सांस साथ छोड़ेगी सुर सजा न पाऊँगा
तो तान भावना की है शब्द शब्द दर्पण है
बांसुरी चली आओ होंठ का निमंत्रण है
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका सी है
रात की उदासी में याद संग खेला है
कुछ गलत न कर बैठे मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
तुम अलग हुई मुझसे सांस की खताओं से
भूख की दलीलों से वक़्त की सजाओं से
दूरिओं समझती है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचनी कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बासुरी चली आओ होठ का निमंत्रण है
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shukriya
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