वो अपने घर की खिड़की से झाकता कम है
तालूकात अभी भी है रापता कम है
फ़िज़ूल तेज़ हवाओं को दोष देता है
तुझे दिया जलने का होसला कम है
में तेरे लिए जान दे देता ऐ दोस्त
मगर मेरी जान का मुआफ्ज़ा कम है
अगर बिकने पे आ जाओ तो घट जाते है दाम अक्सर
न बिकने का इरादा हो तो कीमत और बढती है
No comments:
Post a Comment