Wednesday, February 9, 2011

nawaz dobandi


वो अपने घर की खिड़की से झाकता कम है
तालूकात अभी भी है रापता कम है 
फ़िज़ूल तेज़ हवाओं को दोष देता है 
तुझे दिया जलने का होसला कम है 
में तेरे लिए जान दे देता ऐ दोस्त 
मगर मेरी जान का मुआफ्ज़ा कम है 


अगर बिकने पे आ जाओ तो घट जाते है दाम अक्सर 
न बिकने का इरादा हो तो कीमत और बढती है 


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