Friday, April 4, 2008

फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था

फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था

वो की खुश्बू की तरह फैला था मेरे चारसू
मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था

रात भर उस की ही आहट कान में आती रही
झाँक कर देखा गली में कोई भी आया न था

अक्स तो मौजूद थे पर अक्स तनहाई के थे
आईना तो था मगर उस में तेरा चेहरा न था

आज उस ने दर्द भी अपने अलहदा कर दिए
आज मैं रोया तो मेरे साथ वो रोया न था

ये सभी वीरानियां उस के जुदा होने से थी
आँख धुन्धलाई हुई थी शहर धुन्धलाया न था

याद करके और भी तकलीफ होती थी "अदीम"
भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा न था

1 comment:

dilip said...

Bahot achchi kavita enjoyed.