Tuesday, April 1, 2008

दूसरों को हमारी सज़ायें न दे

दूसरों को हमारी सज़ायें न दे
चांदनी रात को बद-दुआएं न दे

फूल से आशिकी का हुनर सीख ले
तितलियाँ ख़ुद रुकेंगी सदायें न दे

सब गुनाहों का इक़रार कराने लगें
इस कदर खूबसूरत सज़ायें न दे

मोतियों को छुपा सीपियों की तरह
बेवफाओं को अपनी वफायें न दे

मैं बिखर जाऊँगा आंसूओं की तरह
इस कदर प्यार से बददुआएं न दे

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