Wednesday, July 28, 2010

mazhar bhopali

बेअमल को दुनिया में राहतें  नहीं मिलती 
दोस्तों दुआओं से जन्नत नहीं मिलती

अपने दम पर लडती है अपनी जंग हर पीड़ी
नाम से बुजुर्गो के अज़मते नहीं मिलती

इस नए ज़माने के आदमी अजूबे है 
सूरते तो मिलती है सीरते नहीं मिलती

शोहरतो पे इतरा कर खुद को जो खुदा समझे
मंज़र ऐसे लोगो की कुर्बते नहीं मिलती 

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