Wednesday, October 1, 2008

सदमा तो है मुझे भी की तुझसे जुदा हूँ मैं

सदमा तो है मुझे भी की तुझसे जुदा हूँ मैं
लेकिन ये सोचता हूँ की अब तेरा क्या हूँ मैं

बिखरा पडा है मेरे ही घर में तेरा वजूद
बेकार महफिलों में तुझे ढूण्ढता हूँ मैं

मैं खुदकशी के जुर्म का करता हूँ ऐतराफ़ (I agree with the crime of suicide)
अपने बदन की कब्र में कबसे गडा हूँ मैं

किस -किसका नाम लूँ ज़बान पर की तेरे साथ
हर रोज़ एक शख्स नया देखता हूँ मैं

ना जाने किस अदा से लिया तूने मेरा नाम
दुनिया समझ रही है के सब कुछ तेरा हूँ मैं

ले मेरे तजुर्बों से सबक ऐ मेरे रकीब
दो चार साल उम्र में तुझसे बड़ा हूँ मैं

जागा हुआ ज़मीर वो आईना है "क़तील"
सोने से पहले रोज़ जिसे देखता हूँ मैं

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